Tuesday, July 23, 2019

जब चांद पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग की धड़कनें तेज़ हो गईं

चंद्रमा पर इंसान के पहुंचने के 50 साल पूरे हो गए हैं. भारत समेत कई देश चांद पर नए मिशन भेजने की तैयारी में जुटे हैं.

ऐसे में चंद्रमा पर पहुंचने वाले नासा के मिशन की 50वीं सालगिरह पर उसकी यादें दुनिया भर में ताज़ा की जा रही हैं.

नासा ने चांद पर पहुंचने के लिए अपोलो नाम का यान तैयार किया था.

इसकी पहली उड़ान 11 अक्टूबर 1968 को अपोलो 7 मिशन के तहत हुई थी, जिसे धरती की कक्षा की सैर के लिए भेजा गया था.

अपोलो 1 मिशन के सभी यात्रियों की मौत के बाद इसे पूरी तरह नए सिरे से डिज़ाइन किया गया था. अपोलो 7 पर बहुत कुछ निर्भर था.

अगर ये मिशन नाकाम होता, तो शायद नील आर्मस्ट्रॉन्ग कभी भी अपने छोटे क़दम चांद पर नहीं रख पाते.

कम से कम अगले एक दशक तक तो इसकी कोई संभावना नहीं थी.

जबकि अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने नासा के चांद पर पहुंचने के मिशन के लिए यही समय 1961 में तय किया था.

अपोलो 7 मिशन के कमांडर नासा के सबसे तजुर्बेकार अंतरिक्षयात्री वैली शिरा थे. वो मर्करी और जेमिनी मिशन के तहत अंतरिक्ष में जा चुके थे.

अपोलो के कैप्सूल के भीतर उनके साथ पहली बार अंतरिक्ष में जाने वाले डॉन आइसेल और वाल्ट कनिंघम भी थे.

लोगों का मानना था कि चंद्रमा पर उतरने की कोशिश करने वाला अंतरिक्ष यात्रियों का ये पहला जत्था होगा.

लेकिन, अपोलो 7 के लॉन्च होने के कुछ घंटों के भीतर ही वैली शिरा को ज़ुकाम हो गया. इसका पूरे मिशन पर बहुत गहरा असर पड़ा था.

वाल्ट कनिंघम, 50 साल पहले की उस घटना को याद करते हुए बताते हैं, "वैली को अपनी नाक बार-बार साफ़ करनी पड़ रही थी. इसके बाद उन्हें टिशू पेपर रखने की जगह भी खोजनी पड़ती थी. कई बार ऐसा करने के बाद मैंने और डॉन ने उनसे कहा कि सारे टिशू पेपर तुम ही इस्तेमाल नहीं कर सकते."

"पूरे कैप्सूल में इस्तेमाल किए हुए टिशू पेपर ठुंसे पड़े थे. बीमारी की वजह से वैली शिरा थक भी रहे थे और वो बात-बात पर चिढ़ भी रहे थे. इसका असर नासा के कंट्रोल रूम से हो रही उनकी बातचीत पर भी पड़ रहा था."

मिशन कंट्रोल में उस वक़्त फ्लाइट डायरेक्टर रहे जेरी ग्रिफ़िन कहते हैं, "वो बड़ा मज़ेदार तजुर्बा था. अपोलो में सवार तीनों अंतरिक्ष यात्रियों का रिश्ता दिलचस्प हो गया था."

वैली शिरा, कंट्रोल रूम से बार-बार बहस कर रहे थे. उनकी बातें मानने से मना कर रहे थे.

और एक बार तो उन्होंने अपने बॉस और साथी अंतरिक्ष यात्री रहे डेक स्लेटन को कह दिया कि, "भाड़ में जाओ."

ग्रिफ़िन कहते हैं कि मुझे आज तक इसकी वजह समझ में नहीं आई. वैली शिरा के बर्ताव से मैं सदमे में था.

11 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद वैली और उनके दोनों साथ धरती पर लौट आए. मिशन पूरी तरह क़ामयाब रहा था.

इस दौरान वैली ने यान में मौजूद पूरा टिशू पेपर इस्तेमाल कर लिया था और बंद नाक खोलने की सारी दवाएं भी खा डाली थीं.

उनके बर्ताव को साथियों के साथ भी जोड़ दिया गया और वो तीनों दोबारा कभी अंतरिक्ष नहीं जा सके.

किसी भी स्पेस मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत से जुड़े तमाम आंकड़े इकट्ठे किये जाते हैं.

फिर वो ज़ुकाम हो, बुखार हो या फिर लंबे वक़्त तक पेशाब इकट्ठा करने वाली मशीन पहनने से होने वाली जलन ही क्यों न हो.

अपोलो 15 मिशन के दौरान एक अंतरिक्ष यात्री के दिल की धड़कनें असामान्य हो गई थीं. डॉक्टरों का मानना था कि ऐसा पोटैशियम की कमी से हुआ था.

इसलिए अपोलो 16 मिशन के यात्रियों के लिए नारंगी, मौसमी और नींबू जैसे फलों की तादाद ज़्यादा रखी गई. जबकि एक का कंधा खिंच गया था.

वहीं अपोलो 13 के अंतरिक्ष यात्रियों को पानी की कमी की वजह से डिहाइड्रेशन हो गया था. जिसके बाद उन्हें बहुत गैस बनने लगी.

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