Wednesday, March 13, 2019

कितना असरदार होगा मसूद अजहर पर बैन? हाफिज ने नहीं रोका आतंक

पुलवामा हमले के गुनहगार जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति की अहम बैठक बुधवार को होने जा रही है. भारत लंबे समय से मसूद अजहर का नाम वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल कराने का प्रयास करता रहा है, लेकिन वीटो की ताकत रखने वाला चीन हमेशा रोड़ा अटकाता रहा. इसके साथ ही सवाल यह भी है कि 26/11 हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का नाम इस सूची में शामिल होने के बावजूद वो भारत के खिलाफ अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देता रहा.

वैसे को मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम साल 2001 में संसद पर हमले के बाद से ही सुरक्षा परिषद के आतंकी संगठनों की सूची में शामिल है. लेकिन मसूद अजहर का नाम वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल कराने में भारत अब तक नाकाम रहा है. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि जमात-उद-दावा का सरगना हाफिज सईद वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल होने के बावजूद भारत के खिलाफ आतंकी हमलों को अंजाम देने में न सिर्फ कामयाब रहा, बल्कि पाकिस्तान में खुले आम घूमता भी है और भारत के खिलाफ जहर भी उलगता रहा है.

आतंक पर नहीं होगा बड़ा असर

इन परिस्थितियों में जानकारों का मानना है कि भारत का यह प्रयास वैश्विक पटल पर भले ही पाकिस्तान को एक बार फिर बेनकाब करने का मौका दे दे लेकिन मसूद अजहर के कारनामों पर नकेल कसने में कितनी कामयाबी हासिल होगी यह बड़ा सवाल है. पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि पुलवामा हमले के बाद दुनिया भर में पाकिस्तान के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख बदला है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो की ताकत रखने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने माना है कि इसका जवाब मिलना चाहिए. लेकिन सलमान हैदर का मानना है कि इस पाबंदी के बहुत मायने नहीं हैं कि आतंक को रोकने में इसका कोई बड़ा असर होगा.

दिखावे के लिए पाक करता रहा है कार्रवाई

इंस्टीट्यूट ऑफ कन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी का मानना है कि इस तरह की पाबंदियों से कुछ खास फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि आतंकियों पर एक्शन लेने की अंतिम जिम्मेदारी उस राष्ट्र पर होती है जहां से ये ताल्लुक रखते हैं. लेकिन पाकिस्तान ऐसा करने को तैयार नहीं है. अजय साहनी कहते हैं कि जब भी पाकिस्तान पर बहुत दबाव पड़ता है तब उस दबाव को हटाने के लिए इन्हें जो कम से कम करना होता है वो ये करते हैं. हाल ही में पाकिस्तान ने 44 आतंकियों को हिरासत में लिया है लेकिन इसमें शर्त है कि अगर दो हफ्ते में इनके खिलाफ सबूत नहीं मिले तो वे रिहा हो जाएंगे.


चीन के अलग-थलग पड़ने का खतरा

उधर अमेरिका ने आज होने वाली बैठक से पहले चीन को अल्टीमेटम दिया है कि अगर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर बैन नहीं लगता है कि शांति का मिशन फेल हो सकता है. विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति की बैठक बेहद अहम है. वीटो की ताकत रखने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस का प्रयास है कि अगर चीन मसूद अजहर पर प्रतिबंध का समर्थन नहीं करता है तो बैठक से खुद को अलग कर ले.

कमर आगा कहते हैं कि भारत को रोकने की रणनीति में पाकिस्तान, चीन का अहम सहयोगी है. चीन ने 3 बार वीटो का इस्तेमाल कर भारत की राह में रोड़े अटकाए हैं. लेकिन इस बार की परिस्थिति अलग है क्योंकि पुलवामा के बाद भारत के पक्ष में एक माहौल तो बना ही है साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के इस मुद्दे पर साथ आने से चीन अलग-थलग पड़ गया है. ऐसे में अगर चीन चौथी बार वीटो का इस्तेमाल करता है तो वैश्विक स्तर पर उसकी भी छवि को झटका लगेगा.

पाक पर आर्थिक प्रतिबंध लगने का खतरा

जानकारों का मानना है कि अगर भारत को इस बार मसूद अजहर को वैश्विक आतंकियों की सूचि में शामिल कराने में सफलता हासिल होती है तो हम एक कदम और आगे बढ़ेंगे. इससे पाकिस्तान की वैश्विक छवि खराब होने के साथ ही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में उसे ब्लैकलिस्ट कराने के मामले में भारत का केस और मजबूत होगा. यदि ऐसा होता है तो पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगेंगे. जबकि पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है. 

क्या है संयुक्त राष्ट्र की 1267 समिति ?

संयुक्त राष्ट्र की 1267 समिति प्रतिबंधों के मानकों की निगरानी करती है. इन मानकों के आधार पर यह समिति व्यक्तियों और संस्थाओं को नामित करती है जिन पर प्रतिबंध लगाए जाने हैं. इस समिति ने अब तक 257 लोगों और 81 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा चुकी है. इसके साथ ही प्रतिबंधों से छूट के लिए सूचनाओं और अनुरोधों पर भी विचार करती है. वहीं यह समिति सुरक्षा परिषद को प्रतिबंधों के मानकों की सालाना रिपोर्ट भी देती है. यह समिति हथियारों के आयात पर प्रतिबंध, ट्रैवेल पर प्रतिबंध, संपत्ति जब्त करने जैसे फैसले लेती है और हर 18 महीने में इसकी समीक्षा भी करती है.